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धोनी ने सीरीज के बीच में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेकर ठीक नहीं किया
इससे भारतीय टीम की विश्व कप की तैयारियों पर असर पड़ेगा
महेंद्र सिंह धोनी ने आस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज के बीच में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास क्यों लिया? यह सवाल ऐसा है जिसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है, मगर कुछ कयास जरूर लगाए जा रहे हैं। अगर परिस्थितियों के मद्देनजर विचार करें तो धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
1- हो सकता है कि धोनी को कोर्ट में चल रहे फिक्सिंग मामले के कारण इस बात के संकेत मिले हों कि आगे का समय उनके अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में अगर चयनकर्ता उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करें, उससे पहले ही संन्यास लेकर कार्रवाई की धार को कुंद कर दिया जाए।
2- हो सकता है कि धोनी को इस बात के संकेत मिले हों कि टेस्ट में विदेश में लगातार खराब प्रदर्शन के कारण चयनकर्ता सीरीज खत्म होने के बाद उन्हें हटा सकते हैं, इसलिए पहले ही संन्यास लेकर कप्तानी से हटाने जैसी कार्रवाई से बच लिया जाए।
3- हो सकता है कि टेस्ट, वनडे, टी-20 और आईपीएल में लगातार खेलने के कारण वास्तव में धोनी इतना थक गए हों कि अब उन्हें पांच दिन तक लगातार मैदान पर मौजूद रहना रास नहीं आ रहा हो।
4- हो सकता है कि टीम के ड्रेसिंग रूम के माहौल में बहुत ज्यादा गड़बड़ी हो, जिसने धोनी को ऐसा करने के लिए उकसाया हो।
संन्यास के कारण जो भी हों, मगर इसके लिए धोनी की तारीफ तो हरगिज नहीं की जा सकती। वह इसलिए क्योंकि इससे एक तो भारतीय टीम का आस्ट्रेलिया दौरान मजाक बन कर रह गया है और दूसरे इससे भारतीय टीम की विश्व कप की तैयारियों और विश्व कप में प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
धोनी कहते हैं कि चौथे टेस्ट के बाद संन्यास पर क्या बदल जाता? हमारा मानना है कि बहुत कुछ बदल जाता। हमारा तो यह भी मानना है कि धोनी को चौथे टेस्ट के बाद भी नहीं, बल्कि विश्व कप के बाद ही क्रिकेट के किसी भी प्रारूप से संन्यास लेना चाहिए था। ऐसा इसलिए क्योंकि आस्ट्रेलिया में चौथे टेस्ट के बाद भारतीय टीम को अगला टेस्ट विश्व कप के बाद ही खेलना है। यानी आगे विश्व कप से पहले टेस्ट क्रिकेट नहीं है। यानी यदि धोनी विश्व कप के बाद संन्यास लेते तो भी उन्हें एक ही टेस्ट खेलना पड़ता और चौथे टेस्ट के बाद संन्यास लेते तो भी एक ही टेस्ट खेलना पड़ता, लेकिन इन दोनों ही समय में संन्यास के मद्देनजर बहुत बड़ा अंतर पैदा हो जाता है।
यदि धोनी विश्व कप के बाद संन्यास लेते तो विश्व कप के दौरान ड्रेसिंग रूम का माहौल सहज रहता। टीम के खिलाड़ियों के बीच तनान नहीं रहता। वे खेल के अलावा दूसरी किसी बात पर विचार नहीं कर रहे होते, मगर अब तो स्थिति यह होगी कि खिलाड़ी तो खिलाड़ी खुद धोनी भी विश्व कप से पहले या विश्व कप के दौरान सहज नहीं रह सकेंगे।
हमने देखा है कि अक्सर एक विफल व्यक्ति की यह मानसिकता हो जाती है कि अगर वह सफल नहीं हो पाया है तो वह दूसरों को भी विफल ही देखना चाहता है। धोनी ने पहले चाहे जितनी भी उपलब्धियां हासिल की हों, मगर इस वक्त ऐसा लगता है कि वे देश के लिए नहीं सोच रहे हैं। वे स्वार्थी हो गए हैं। शायद उन्हें लग रहा है कि मैं तो बुझ ही रहा हूं, फिर बाकी लोग क्यों चमकें। ऐसा लगता है कि वे आस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज से पहले असमंजस की स्थिति भी बनाए रखना चाहते थे। तभी तो उनके चोटिल होने के बावजूद यह खबर आई कि नहीं अब विराट कोहली नहीं बल्कि धोनी ही पहले टेस्ट में टीम की कप्तानी करेंगे। यानी ऐसा लगता है कि धोनी कहीं न कहीं यह चाहते थे कि विराट के मन में अंत समय तक यह असमंजस रहे कि वे कप्तान रहेंगे या नहीं।
कुल मिलाकर धोनी ने टेस्ट सीरीज के बीच में संन्यास लेकर एक अच्छे खिलाड़ी और अच्छे इंसान होने का परिचय नहीं दिया है। उन्होंने सीधे-सीधे टीम की विश्व कप की तैयारियों को गड़बड़ा दिया है। अब जब वे फिर से वन डे टीम की कप्तानी संभालेंगे तो टीम में वह माहौल नहीं रहेगा, जो अभी तक रहता था।
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